परदेशी भाग 27


कमल हास्पिटल में भर्ती था और मधु ने उसके पिता को खबर कर दी थी। बेटे के घायल होने की खबर पाते ही उसके पिता दौड़े चले। कमल के पूरे शरीर पर जगह-जगह पट्टियां बंधी थीं। बेटे को इस हालत में देखकर उसे बूढ़े बाप का कलेजा मुंह को आ गया। उसने कमल से पूछा कि यह सब कैसे हुआ, मगर कमल कुछ न बोला। वह तो बस सूनी आंखों से शून्य में कहीं ताकता रहता।
उस बूढ़े के बार-बार पूछने पर भी जब कमल कुछ न बोला तो वह रोता हुआ बाहर निकल गया। बाहर बेंच पर मधु बैठी थी। कमल के पिता को यूं रोते देख वह उठी और उनके कांधे पर हाथ रखकर दिलाशा देने लगी। तब उस बूढ़े ने मधु से भी वही सवाल किया...
कैसे हुई कमल की यह हालत।
मधु छिपा न सकी। उसने बॉबी और कमल की प्रेम कहानी बयां कर दी और बता दिया कि कमल की यह हालत बॉबी की मम्मी ने करवाई है, मगर चोट कमल के दिल पर लगी है।
बूढ़ा काफी देर तक शून्य में ताकता रहा फिर धीरे से बड़बड़ाते हुए बोला, मैं जाउंगा उनकी चौखट पर। अपने बेटे की खुशी की भीख मांगूंगा। नाक रगड़ूंगा, पैर पकड़ुंगा, मगर बेटे की खुशिया लेकर लौटंूगा।
मधु से बॉबी के घर का पता पूछकर वह चल पड़ा। उन बूढ़ी हड्डियों में न जाने कहां से इतनी जान आ गई थीं कि वह कुछ ही देर में बॉबी के घर पहुंच गया। बड़े से बंद गेट ने उसका स्वागत किया। गेट के पीछे दोनों लठैत, लाठी थामे खड़े थे।
बूढ़े ने हाथ जोड़कर कहा, भैय्या मुझे मालकिन से मिलना है।
क्या काम है, बुड्ढे, क्यों मिलना है मालकिन से। रामू ने रौबदार आवाज में रुखेपन से पूछा।
भैय्या उन्हीं से काम है। मुझे उनसे मिल लेने दो।
अरे जा, तेरे जैसे बहुत आते हैं। भीख मांगना है तो कहीं और जाकर मांग, यहां कुछ नहीं मिलेगा। रामू उसी तरह बोला।
भैय्या मैं कमल का बाप हूं। बस एक बार मालकिन से मिलना चाहता हूं।
अच्छा तो तू है, जिसने उस मजनूं को पैदा किया। सुन बुड्ढे अपने छोरे को लेकर गांव चला जा। यहां रहा तो पक्का मारा जाएगा।
भैय्या ऐसी बात क्यों कहते हो। मुझे बस एक बार मालकिन से मिल लेने दो। मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूं।
तभी ऊपरी मंजिल की खिड़की से शारदा देवी का चेहरा नजर आया। उन्होंने वहीं से पूछा...
क्या हुआ रामू? इतना शोर क्यों मचा रहे हो।
कुछ नहीं मालकिन। उस छोकरे का बाप आया है। कहता है, आपसे मिलना है।
शारदा देवी ने कुछ देर पता नहीं क्या सोचा, फिर बोलीं, ठीक है उसे अंदर भेज दो।
रामू ने गेट खोल दिया। बूढ़ा धीरे-धीरे चलता हुआ पोर्च में पहुंचा। तब तक शारदा देवी भी नीचे आ चुकी थीं। उन्हें देखते ही वह सीधा उनके कदमों में गिर सा गया।
गिड़गिड़ाते हुए बोला, मालकिन मैं आपसे अपने बेटे की खुशियों की भीख मांगती हूं। उसे बचा लो मालकिन इस तरह वह मर जाएगा।
शारदा देवी रुखाई से बोली, मरता है तो मर जाए। मैं क्या करूं। उसे ऊंचे सपने देखने के पहले सोचना था।
इतनी निष्ठुर न बनो मालकिन आपके भी एक औलाद है, कम से कम उसकी खुशियों का ही खयाल कर लो।
कैसी खुशी, मखमल में टाट के पैबंद नहीं लगाए जाते। सुनो अपने छोकरे को लेकर इस शहर से चले जाओ, इसी में उसकी भलाई है।
मालकिन मैं आपके पैर पड़ता हूं। बूढ़ा उनके पैरों में लेट सा गया। इतनी कठोर मत बनो।
शारदा देवी पीछे हट गईं और बोली, अपने बेटे की खैर चाहता है तो उसे लेकर चले जा। कुछ पैसे चाहिए तो बोल दे देती हूं। उससे कहना मेरी बेटी के बारे में सोचा भी तो मारा जाएगा।
मालकिन....बूढ़ा जोर से चीख सा पड़ा।
फिर बोला, शारदा देवी बेटी तुम्हारी भी है। भगवान न करे कि कभी तुम्हें भी औलाद के तड़पना पड़े और तुम भी कुछ न कर पाओ। जाता हूं मैं। शाप तो नहीं दूंगा, क्योंकि जानता हूं कि ऊपर बैठा वह सबका हिसाब रखता है।
बूढ़ा मुड़ा और थके से कदमो से बाहर की तरफ चल पड़ा।
शारदा देवी घर के भीतर चली गईं। वे नहीं जानती थी कि ऊपर खिड़़की पर खड़ी बॉबी उनकी सारी बातें सुन चुकी है।