परदेशी भाग 22


अगले दिन मधु कॉलेज पहुंची तो बहुत खुश थी। गेट के बाहर ही उसे रंजीत मिल गया।
उसने मधु को देखा तो पूछा क्या बात है, कदम जमीन पर नहीं पड़ रहे हैं। कमल का लंड मिल गया क्या?
हां रंजीत और अब मैं रोज उसी से चुदवाउंगी। क्या धांसू चुदाई की उसने। तुम सब फेल हो उसके आगे। इसीलिए तो बॉबी उसकी दीवानी है।
तो फिर हमारा नंबर कब आएगा जानेमन, रंजीत शरारत से बोला।
अब तुम्हारा नंबर कभी नहीं आएगा। अब तो इस चूत पर कमल के लंड की मोहर लग चुकी है और किसी और का लौड़ा स्वीकार ही नहीं करेगी।
अरे अपनी चूत न दो, मगर बॉबी की तो दिलवा दो।
दिलवा दूंगी, उसे कॉलेज तो आने दो।
अगर कॉलेज न आई तो? रंजीत ने शंकाभरी निगाहों से पूछा।
नहीं आई तो मैं क्या कर सकती हूं।
देखो मधु, तुम्हारे कहने पर ही मैने अपने दोस्त को बॉबी के पास भेजा। उसने एक नाटक की रिहर्सल करने का बहाना करके बॉबी को तैयार किया और उसी रिहर्सल की फोटो मैने खींची। उन्हीं फोटो को दिखाकर तुमने कमल को हासिल किया। अब यदि बॉबी की चूत नहीं दिलवाई तो मैं सब कमल को बता दंूगा।
रंजीत भड़को मत, मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही हूं।
अभी मधु इतना कह ही पाई थी कि कमल उनके सामने आकर खड़ा हो गया। उसकी आंखें गुस्से से लाल हो रही थीं।
कमल को अचानक सामने देखकर मधु हड़बड़ा गई। उसके मुंह से केवल इतना निकला, कमल तु...तु...म...कब आए।
बेगैरत लड़की, तू जब अपनी सहेली के प्यार पर डाका डालने की कहानी बता रही थी, तब।
कमल को सामने देखते ही रंजीत वहां से रफूचक्कर हो गया।
मधु नजरें झुकाकर खड़ी थी। उससे कुछ कहते नहीं बन रहा था। कमल को इतना गुस्सा आ रहा था कि वह ठीक से बोल तक नहीं पा रहा था।
उसने केवल इतना ही कहा, तू छिनाल तो थी, मगर आज अपनी सहेली के प्यार पर डाका डालकर सिद्ध कर दिया कि रंडियों की खलीफा है। जी करता है तेरा खून कर दूं, मगर तेरे गंदे जिस्म को अब छूना तक नहीं चाहता हूं।
मधु चुपचाप खामोशी से सुनती रही। कमल ने उसे खूब अनाप-शनाप सुनाया और पैर पटकता हुआ वहां से चला गया।
कमल बॉबी को ढूंढता फिर रहा था। उसे रह-रह कर बॉबी को चांटा मारना याद आ रहा था और उसका दिल तड़प रहा था। बॉबी आज आखिरी बार कॉलेज आने का फैसला करके आई थी। वह प्रिंसिपल को बताना चाहती थी कि आज से वह नहीं आएगी, इसलिए उसका नाम काट दिया जाए।
कमल अभी उदासी से क्लास की तरफ जा रहा था कि शायद बॉबी वहां कि तभी बॉबी प्रिंसिपल के कमरे से निकलती नजर आई। वह लपककर उसके पास पहुंचा। उसने बॉबी के सामने हाथ जोड़ दिए। उसके मुंह से कोई शब्द नहीं निकल रहे थे।
बॉबी उसकी तरफ सूनी नजरों से देखती रही। उसकी आंखों में पानी तैर रहा था।
पानी कमल की आंखों में भी था। वह बहुत कुछ कहना चाहता था, मगर जुबान को शब्द नहीं मिल पा रहे थे।
वह हाथ जोड़े ऐसे ही खड़ा रहा, बॉबी उसकी तरफ यूं ही निहारती रही।
कमल ने जैसे-तैसे कहा, बॉबी....मुझे माफ कर दो। यह मधु की चाल थी। मैं उसमें फंस गया। तुम पर शक कर मैने गुनाह किया है। मुझे माफ कर दो और कमल की आंखों में थमा पानी बह चला।
बॉबी उसकी आंखों में आंसू न देख सकी। उसका दिल मोम की तरह पिघल गया और उसके होंठों से केवल एक ही शब्द निकला....ओ..ह...कमल..।
उसने कमल जुड़े हाथ थाम लिए। दोनों एक दूसरे में खोए ही थे कि शारदा देवी की कार कॉलेज में दाखिल हुई। शारदा देवी प्रिंसिपल के केबिन की तरफ बढ़ीं, कमल और बॉबी इस बात से अनजान अब भी एक-दूसरे की आंखों में खोए, आंखों से ही सारे गिले-शिकवे दूर कर रहे थे।
तभी शारदा देवी की नजर उन दोनों पर पड़ीं। उनकी आंखें सिकुड़ गईं। वे दोनों को कुछ देर निहारती रहीं और फिर जोर से दहाड़ीं, बॉबी।
मां की आवाज सुनकर बॉबी चौंकी। कमल का हाथ उसके हाथ से छूट गया। उसने नजरें घुमाईं तो शारदा देवी को क्रोध से कांपते सामने खड़े पाया। बॉबी मां का यह रूप देखकर जड़वत सी हो गई।
उनका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। उनकी कनपटियां तक सुलग उठीं। वे दांत भींचे तेज कदमों से आगे बढ़ीं और बॉबी का हाथ पकड़कर झटके से अपनी तरफ खींचा। उसे लिए प्रिंसिपल के कमरे में दाखिल हो गईं।
प्रिंसिपल उनका यह रूप देखकर कांप उठा। शारदा देवी दहाड़ी-प्रिंसिपल साहब यह क्या हो रहा है ऑपके कॉलेज में..?
क..क...क्या... कह रही हैं आप? प्रिंसिपल हकलाते हुए बोली। 
आपकी नाक के नीचे मेरी बेटी किसी देहाती लड़के से रोमांस कर रही है और मुझे खबर तक नहीं की। कौन है ये लड़़का? शारदा देवी ने दांत भींचते हुए पूछा।
वही गांव का लड़़का है, जिसे आपने छात्रवृत्ति देने की सिफारिश की थी। प्रिंसिपल नजरें झुकाकर बोला।
ओह तो ये वो है..शारदा देवी कुछ सोचते हुए बोली।
जी....प्रिंसिपल केवल इतना ही कह सका।
ठीक है प्रिंसिपल साहब, बॉबी अब कॉलेज नहीं आएगी। उसका नाम दर्ज रहेगा। परीक्षा के समय खबर कर देना।
आप चिंता न करें शारदा देवी, परीक्षा देने की भी क्या जरूरत। रिजल्ट घर पहुंच जाएगा। प्रिंसिपल की रुकी सांस लौट रही थी।
हूं....शारदा देवी ने केवल इतना ही कहा और गुस्से से तमतमाते जैसे आईं थीं, वैसे ही तेजी से निकल गईं। बॉबी का हाथ अब बी उनके हाथ में था और वह उनके साथ खिंची चली जा रही थी। कमल प्रिंसिपल के केबिन के बाहर बेचारगी में खड़ा था।
शारदा देवी ने एक बार, सिर्फ एक बार उसे कड़ी नजरों से घूरा और बॉबी से कहा बैठो कार में।
बॉबी बिना कुछ कहे कार में बैठ गई।